उत्तर भारत में कुशाण सत्ता 230 ईस्वी के लगभग समाप्त हो गई, तब मध्य भारत का एक बड़ा भू-भाग शक मुरंड़ोके शासन में आ गया, जो की 250 ईस्वी तक शासन करते रहे | उसके बाद 275 ईस्वी में गुप्त वंश का उदय आया | इस वंश का संस्थापक श्रीगुप्त था | समुद्रगुप्त ने स्वयं को ‘प्रयाग प्रशस्ति’ में श्रीगुप्त का प्रपौत्र कहा हैं | श्रीगुप्त केबाद घटोत्कच गुप्त शासक हुआ जिसकी उपाधि महाराज थी |
चन्द्रगुप्त प्रथम (320—335 ईस्वी)
घटोत्कच के बाद उसका पुत्र चन्द्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश का शासक बना | इसने महाराजाधिराज की उपाधि धारणकी जिसका विवाह लिच्छवीवंशजा कुमारदेवी से हुआ | चन्द्रगुप्त प्रथम ने 319 ईस्वी में एक संवत चलाया, जो गुप्तसंवत के नाम से प्रसिद्ध हैं |
समुद्रगुप्त (335----380 ईस्वी)
चन्द्रगुप्त प्रथम ने समुद्रगुप को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया | उसका आदर्श दिग्विजय और एकीकरण थावह साम्राज्यवाद में विश्वास करता था | उसके दरबारी कवी हरिशें ने उसकी सैनिक सफलताओं का विवरणइलाहाबाद प्रशत्ति अभलेख में किया हैं यह अभिलेख उसी स्तंभ पर उत्कीर्णित हैं जिस पर का अभिलेख उत्कीर्णितहैं | समुद्रगुप्त के द्वारा जीते हुए प्रदेशों को पांच समूहों में बांटा जा सकता हैं ( 1 ) गंगा यमुना दोआब के राज्य, (2) पूर्वी हिमालय के राज्य (3) पूर्वी विन्ध्य क्षेत्र के आत्विक राज्य (4) पूर्वी दकन व् दक्षिण भारत के राज्य (5) शक औरकुषाण राज्य | इलाहाबाद प्रशत्ति के अनुसार वह कभी भी कोई युद्ध नहीं हारा था उसके पास एक विशालकाय एंवशक्तिशाली नौसेना भी थी जिससे वह विदेशो से सम्बन्ध सुदृढ़ कर सका | समुद्रगुप्त ने अश्वमेघ यज्ञ भी किया | उसके सिक्कों पर अश्वमेघ पराक्रम लिखा मिलता हैं | वह ललित कलाओं में निपुण था उसे कविराज भी कहा गयाहैं | वह संगीत में भी निपुण था और भगवान विष्णु का भक्त था परन्तु सभी धर्मों का आदर करता था |
चन्द्रगुप्त द्धितीय (380----412 ईस्वी)
चन्द्रगुप्त द्धितीय समुद्रगुप्त का पुत्र था | उसका नाम देवराज तथा देवगुप्त भी मिलता हैं | उसने अपने साम्राज्य कोविवाह संबंधो और विजयों द्वारा बढाया | उसने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह बाकाटक राजा रुद्रसेन से किया, जिसकी मृत्यु के पश्चात प्रभावी अपने छोटे पुत्र को गद्दी पर बिठाकर राज्य की वास्तविक शासक बन गई | चन्द्रगुप्तने पश्चिम मालवा व् गुजरात को भी जीता | उज्जैन को उसने अपनी दूसरी राजधानी बनाया | शक विजय के पश्चातउसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की |
कुमारगुप्त महेन्द्रादित्य (414---455 ईस्वी)
चन्द्रगुप्त द्धितीय के बाद उसका पुत्र कुमार गुप्त शासक बना | कुमार गुप्त को ही नालंदा विश्वविद्यालय कासंस्थापक माना जाता हैं | उसका राज्य सौराष्ट्र से बंगाल तक फैला था | अपने राज्य के अंतिम दिनों में उसे पुष्यमित्रके विद्रोह का सामना करना पडा |
स्कंदगुप्त (455----467ईस्वी)
स्कंदगुप्त ज्येष्ठ पुत्र न होते हुए भी राज्य का उत्तराधिकारी बना | गुनागढ़ अभिलेख द्वारा ज्ञात होता हैं की स्कंदगुप्तने मौर्यों द्वारा निर्मित सुदर्शन झील का उदघाटन करवाया था | जूनागढ़ अभिलेख में इस बात का उल्लेख है कीसिहांसन पर बैठने के समय स्कंदगुप्त को म्लेच्छो के रूप में कुख्यात हूणों से जूझना पडा था | स्कंदगुप ने अंतत: हूणों को पराजित कर दिया |
गुप्तवंश की सांस्कृतिक उपलब्धियां
भारत के सांस्कृतिक इतिहास में गुप्त वंश का बहुत महत्त्व हैं | गुप्त सम्राट वैदिक धर्म को मानते थे | समुद्रगुप्त तथा कुमारगुप्त प्रथम ने तो अश्वमेघ यज्ञ भी किया था | उन्होंने बौद्ध और जैन धर्म को भी प्रश्रय दिया | चन्द्रगुप्त द्धितीय के समय चीनी यात्री फाह्यान भारत आया था | उसके विवरणों से पता चलता हैं की गुप्त साम्राज्य सुशासित था, उसमें अपराध बहुत कम होते थे और कर भार भी बहुत कम था | राजकाज की भाषा संस्कृत थी |
अभिज्ञान शाकुंतलम नाटक तथा रघुवंशम महाकाव्य के रचयिता कालिदास, मृच्छकटीकम नाटक के लेखक विशाखदत्त तथा सुविख्यात कोशकार अमरसिंह गुप्तकाल में ही हुए | रामायण, महाभारत तथा मनु संहिता अपने वर्तमान रूप में गुप्त काल में ही सामने आई | गुप्तकाल में आर्यभट, वराहमिहिर तथा ब्रह्मगुप्त ने गणित तथा ज्योतिर्विज्ञान के विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया | इसी काल में दशमलव प्रणाली का आविष्कार हुआ जो बाद में अरबों के माध्यम से यूरोप तक पहुंची | उस काल की वास्तुकला, चित्रकला तथा धातुकला के प्रमाण झांसी और कानपुर अवशेषों, अजन्ता की कुछ गुफाओं, दिल्ली में स्थित लौहस्तंभ, नालंदा में 80 फुट ऊँची बुद्ध की तांबे की मूर्ति तथा सुल्तानगंज स्थित साढ़े सात ऊँची बुद्ध की तांबे की प्रतिमा से मिलते हैं |
गुप्तकालीन समाज
गुप्तकालीन समाज परम्परागत रूप से चार वर्णों में विभक्त था | समाज में ब्राह्माणों का स्थान सर्वोच्य था उनके कर्त्तव्य माने जाते थे---- अध्ययन, अध्यापन, यज्ञ और दान | क्षत्रिय का कर्त्तव्य राष्ट्र की रक्षा करना था | वैश्य का कार्य व्यापार और वाणिज्य करना था | शुद्र सेवा प्रदाता था | गुप्तकाल में जातियों के विषय में व्यवसाय का बंधन शिथिल होने लगा था, फिर भी वर्णों का आधार गुण और कर्म न होकर जन्म ही था | स्त्रियों का समाज में महत्तवपूर्ण स्थान था | धार्मिक कृत्यों में पति के साथ पत्नि की उपस्थिति अनिवार्य थी | स्त्री शिक्षा का प्रचलन था | पर्दा प्रथा नहीं थी | आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख मिलता था | स्वयंवर प्रथा भी विद्यमान थी | कायस्थ गुप्त युग में एक वर्ग था जो बाद में एक जाती के रूप में अस्तित्त्व में आ गया | गुप्तकालीन साहित्य में नारी का आदर्श चित्रण हैं |
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